Friday, April 17, 2009

गुप्त साहित्य ....

पुराणों का जो रूप आज देखते है वह गुप्तकाल की ही देन है ।
रामायण और महाभारत को भी अन्तिम रूप गुप्त काल में ही दिया गया ।
नारद , कात्यायन , पाराशर , बृहस्पति आदि स्मृतियों की रचना इसी काल में हुई ।
हरीशेन महादंड नायक ध्रुव्भुती का पुत्र था जिसने प्रयाग प्रशस्ति की रचना की ।
हरिशेन समुद्रगुप्त के समय संधिविग्र्हिक ,कुमारामात्य और महादंड नायक के पद पर था ।
प्रयाग प्रशस्ति का पुरा लेख गद्य पद्य मिश्रित शैली में है ।

वासुल ने मंदसौर प्रशस्ति की रचना की ।
विशाख्दत ने दो नाटकों मुद्राराक्षस और देविचंद्र्गुप्तम की रचना की ।
मुद्राराक्षस में चाणक्य की योजनाओं का वर्णन है ।
देविचंद्र्गुप्तम में चन्द्रगुप्त द्वितीय के द्वारा शकराज के वध और ध्रुवदेवी के साथ विवाह का वर्णन है ।

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