Sunday, April 5, 2009

इन फिल्मों को देखने का सपना आंखों में है .....

इन फिल्मों को देखने का सपना आंखों में है । वो दिन मेरी जिंदगी में अनोखा होगा जब इन सभी फिल्मों को देख सकूँगा । अभी तो इन्तजार ही करना है ....इसका भी तो अपना मजा है ।

शांताराम की फिल्म "दुनिया ना माने",
फ्रैंज ओस्टन की फिल्म "अछूत कन्या",
दामले और फतेहलाल की फिल्म "संत तुकाराम"
मेहबूब खान की फिल्में "वतन", "एक ही रास्ता" और "औरत",
अर्देशीर ईरानी की फिल्म "किसान कन्या"

1 comment:

अभिषेक मिश्र said...

इसमें देव आनंद की 'गाइड' को भी जोड़ लीजिये. कभी दूरदर्शन को याद थीं ये फिल्में, मगर आज इन्हें पूछता भी कौन है!